बंदर व्यथा 🐒

आज हमारे शहर के बंदर शायद कुछ हद तक वैसा ही महसूस कर रहे होंगे जैसे जब यह लखीमपुर खीरी शहर नहीं एक छोटा सा कस्बा रहा होगा. मैं जब इस शहर की आज विरान सड़कों पर निकाला तो वैसे सन्नाटा नज़र आया जैसे की 1980 के मध्य में शाम को हमारे शहर की सिविल लाइन रोड कही जाने वाली सड़क पर सात आठ बजते हो जाया करता था. उस दौर मे चंद कारें, साइकिलें ज्यादा और स्कूटर कम नज़र आते थे और हरे भरे विशाल दरख़्तों मे बंदर जैसे समाजिक प्राणी ही का पूर्ण वर्चस्व था. अक्सर बंदरों का जमावड़ा हमरे घरों के किचन तक पहुंच जाता था मगर तब शहर में बिजली के तार का विस्तार इतना नहीं था की वो उसमें दिनभर लटकते नज़र आए जैसे आजकल तारों पर लटकते हुए अपनी जान को ख़तरों में डालकर सड़क के उपर से पार करते है क्योंकि नीचे तो उनके प्राचीन इलाक़ों पर इंसानों की भीड़भाड़ और वाहनों के जाम ही होते हैं. मगर पिछले कुछ दिनों से अचानक बंदरों की बिन मुराद पूरी हो गई हो वो अब सड़कों पर उतर पार कर रह है यह नज़ारा मुझे ख़ुद अचरज भरा लगा मगर इस ख़ुशी की बात के बीच पापी पेट का सवाल भी खड़ा हो गया है, जहां कल तक इंसानों के शहर में तला भुना कच्चा पक्का कुछ न कुछ खाने को मिल ही जाता था | मगर आज तो भगवान के दर के बाहर भी इंसान नदारद हैं और एक ताला लगा नज़र आ रहा है वरना प्रसाद से ही पुजारी जी कुछ न कुछ तो ज़रूर इन वानर प्राणियों को दे ही देते थे अब तो उसकी भी कुछ आस चंद दिनों नज़र नही आती है | यह तो हम आप जानते है कि चंद दिनों बाद सब सामान्य हो जायेगा ऊपर वाले की कृपा से मगर यह मासूम जीव जो अब हम इंसानो के बनाये हुए भोजन पर ही अपना जीवनयापन कर जीवन के संघर्ष में आज तक कामयाब रहे है और शायद आगे भी रहेंगे पर फिलहाल तो इन बंदरों की समस्या तो है जो किसी विषाणु के डर से नहीं बल्कि हमारे आदी हो चुकी इनकी आदत की वजह से खड़ी है | इसलिए मना किया जाता है किसी जंगली जीवों या पक्षियों को अपनी तरफ़ से ऐसा कोई भोजन न दो जो इनके ख़ुद के भोजन ढूंढने के स्वभाव पर प्रतिकूल असर डाले और यह जीव आप पर ही निर्भर होकर रह जाये | जीवों को ख़िलाना पुण्य का काम है मगर जगली जीवों के साथ ऐसा करना बुरी बात होगी.... आप सबको पालतू आवारा पशु जो हमरे गली मोहल्लों मे घूमते नजर आते हो उनको भोजन और जल देना बड़ा ही नेक काम है और हम सबको इनके प्रति दया का भाव ज़रूर रखना चाहिए...
यह दुनिया जितनी आपकी है उतनी इनकी भी है ||
 (उरुज शाहिद)

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